Sunday, September 16, 2012

आखिर मिडिया क्यूँ कर रहा वसुधा केंद्र को नजरंदाज?


” बिहार में मीडिया स्वतंत्र नहीं है”

श्री मार्कंडेय काटजू,  अध्यक्ष -भारतीय प्रेस परिषद्
बिहार में सुशासन की चकाचौंध मिडिया को अपने चमकते हुए फ्लस से फुर्सत ही नहीं दे रहा की इनकी कैमरा का फ्लस कभी वसुधा केंद्र के समस्याओं पे चमके ! आखिर दिन भर सुशासन की जो इन्हें खबर लिखनी या चलानी पड़ती है !और आज के दुनिया में गरीब एवं लाचार लोगों की मीडिया कैसे संज्ञान ले सकती है, जिससे इनके लाभ पे विपरीत असर पड़ जाये ! ये हकीकत है की अख़बारों की अच्छी खासी आमदनी राज्य सरकार के विज्ञापनों से प्राप्त होती है और, ये भी एक हकीकत का हिस्सा है की, वसुधा केंद्र को मटिया मेट करने में वर्तमान राज्य सरकार ने अपने तरफ से  कोई कोर – कसर बाकि नहीं छोड़ी है ! सरकारी विज्ञापन बेशक मीडिया को -सरकार की चाटुकारिता करने पे विवश करती है ! अगर मीडिया थोड़ी हिम्मत कर के वसुधा केंद्र के समस्यायों को उजागर करती भी है, तो निश्चिततौर पर सरकारी हाथ इनका पीछा करना चालू कर देगा! ये बात खास कर तब जोर से चर्चा में विशेष रूप से आयी जब, प्रेस परिषद् के अध्यक्ष श्री मार्कंडेय काटजू ने तल्ख़ तेवर में सीधे तौर पे बिहार के सुशासन की सरकार पे यह कहते हुए हमला बोला था की ” बिहार में मीडिया स्वतंत्र नहीं है”! इनके इस बात से मानो जैसे सरकार और मिडिया के होश उड़ गए हों ! सरकार ने कहा की श्री काटजू झूठ बोल रहे हैं ! फिर श्री काटजू ने फैक्ट फिन्डिंग कमिटी बना डाला जाँच हेतु ! फिर क्या – देखते ही देखते करीब 200 पत्रकारों ने अपनी लिखित और मौखिक शिकायत से, सरकार और मीडिया दोनों के पसीने छुट गए ! इन पत्रकारों ने अपने ज्यादातर शिकायतों में कहा और लिखा है की “मीडिया द्वारा उन्हें इसलिए कोपभाजन का शिकार बनाया गया – क्यूँ की वो सरकार के कथनी और करनी के फासले को अपनी लेखनी से उजागर कर रहे थे! जो मीडिया को नागवार गुजरा”!
ये बातें हमें पूरी तरह आश्वस्त करती है की सरकारी दबाव ही वो मूल कारन है जो, मीडिया को विवश करता है सरकार के विरुद्ध न जाने के लिए ! और ये बात सबको मालूम है की वर्तमान सरकार द्वारा ही इस योजना को चालू कर बैक -फुट पे रखा गया ! और देखते ही देखते 6000 संचालकों के परिवार की जीविका दैनिये दशा में जा पहुंची ! क्या 6000 परिवारों की आजीविका की समस्या मीडिया के लिए समाचार नहीं है ? क्या वसुधा केंद्र के संचालक सरकारी वादों पे भरोसा कर के धोखा नहीं खाए हैं ? क्या मीडिया नहीं जानता की इसका जिम्मेवार अपने सुशासन बाबु हैं ? क्यूँ की इन्ही के गोल- मटोल वादों पे ऐतबार कर के वसुधा केंद्र संचालकों ने अपना बेसकिमती समय और पूंजी लगाया , जिसका न तो कोई वर्तमान है और ना ही भविष्य ! मीडिया के इस रवैये से हम सब संचालकों को यही लगता है की शायद हम सब किसी और देश या राज्य के शरणार्थी हैं और वसुधा केंद्र ले रखे हैं, जिसे शायद सरकार और मीडिया हजम नहीं कर पा रही !

Kumar Ravi Ranjan,
Rohtas, Bihar

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